लघु संसद का सच, एक सत्य


प्रिय दोस्तों,

  • आज के तकनीकी दौर में किसी के पास दूसरे व्यक्ति के बारे में सोचने के लिए वक्त नहीं है। कौन क्या कर रहा है? हमें क्या, बस थोड़ा बहुत वक्त अखबार पढ़कर एवं मोबाइल से सोशल मीड़िया और गूगल पर न्यूज से समस्त संसार की खबरें जान लेते हैं। इस दौरान वे समाज में व्याप्त अच्छाइयों की बजाय नकारात्मक विषय-वस्तु पर अधिक फोकस करते हैं। दिनभर की खबरें कुछ ही समय में पढ़कर वे ऑफिस में खाली वक्त या लंच के समय अपनी सारी भड़ास निकाल लेते हैं और लघु संसद का सत्र रच लेते हैं। जिनकी बहस बंदी में कोई तुक बंदी नहीं होती है निष्कर्ष कुछ नहीं निकलता और बोलों का स्वर कभी तेज तो कभी धीमा, कभी क्रोधित तो कभी निराशावादी तो कभी मजाकियां खुशनुमा हो जाता है।
  • लघु संसद का सच मेरी वह कृति है जो गरीब, सामान्य और उच्चवर्ग के व्यक्तियों के अपने दैनिक जीवन में घटित होता है क्योंकि व्यक्ति सामाजिक प्राणी है। यह स्वाभाविक है कि घूम फिर के व्यक्ति को समाज की घटनाओं से टकराना अवश्य पड़ता है, क्योंकि जब सुबह पहले अखबार या मोबाइल पर न्यूज पढ़ता है, तो प्रारम्भिक पृष्ठ से अंतिम तक मुख और मस्तिष्क में तर्क के भाव झलकते हैं। काश मैं यहां होता तो ऐसा करता। सरकार में मैं होता तो यह नहीं यह स्कीम चलाता। 
  • तर्क का बाजार बहुत बड़ा है और व्यक्ति के हाथों में सीमित अधिकार। वह यह सब इसलिए सोचता है उसका वास्ता हमेशा मध्यम एवं अभावग्रस्त लोगों से होता है क्योंकि वह ऐसे ही परिवार में रहता है और समाज के उच्च और निम्न, हर वर्ग को देखता है, उनके बारे में जानता है। वही एक उच्चवर्ग इन सबसे परे सिर्फ अपनी आय के स्रोतों पर ध्यान केन्द्रित रखता है।

बुरा बुराई न करे, बुरा न बोले बोल।
दिवांशु कब कहे, मैं तेरे जीवन का भोर।।
यानि हमें बुराई नहीं करनी चाहिए, लेकिन हमे सबसे ज़्यादा मजा ही बुराई करने में आता है। कड़वे वचन हमें कभी नहीं कहने चाहिए लेकिन जब दो लोगों में लड़ाई होती है तो हम कड़वे वचन पहले बोलते हैं।
वह दिवांशु यानि सूर्य किरण कभी भी नहीं कहती है कि हे संसार के प्राणी में तुम्हारे जीवन की सुबह हूं अर्थात सूर्य किरण प्रकृति के प्राणियों के लिए नव चेतना है। 

  • लघु संसद का सच अपने लेखों द्वारा समाज में व्याप्त नए आड़म्बर जो समाज में पूंजीवादी कम्पनियां, संस्थाओं और महत्त्वकांक्षी लोगों द्वारा अपनी स्वार्थी अभिलाषाओं की पूर्ति के लिए अपनाए जा रहे हैं, जिनमें सामान्य लोग फंस रहे हैं, को उजागर करना है। 
  • मेरी किसी से न कोई दुश्मनी है, न मित्रता। मानव सोच को साकार करने की कोशिश मात्र है।
  • जब मानव शरीर का अस्तित्व नहीं, तो फिर हमें किसी से बैरभाव या धन लोलुपता की चाह जगाने की जरूरत नहीं होनी चाहिए।
  • लघु संसद का सच द्वारा किसी मत, राजनीतिक पार्टी या धर्म या संस्था या किसी कम्पनी को नुकसान नहीं पहुंचाना है बल्कि उन्हें इस ओर प्रेरित करना है कि जब समाज का मध्यम वर्ग ही नहीं होगा, तो आपका भी अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।


  • दोस्तों की दोस्त तब तक काम आती है जब तक आप कोई त्याग करते हैं। हां, सच है मैंने परखा है दोस्तों को जब पैसे कि बात आती है लोग दूर भागने लग जाते हैं। यकीनन ऐसा होता है।
  • कई बार अमीर-गरीब में दोस्ती हो जाती है या एक गरीब छात्र की आर्थिक सम्पन्न छात्र से दोस्ती हो जाती है तो उनका एक-दूजे के घरों में आना जाना लगा रहता है। वे एक-दूजे पर जान देने तक कि बात करते हैं किंतु वह सम्पन्न छात्र या उसके परिवार वाले कभी नहीं कहता कि बेटा खूब पढ़ मैं तेरी पढ़ाई पर खर्च करूंगा, हां कुछ दानवीर होते अवश्य है।
  • पर ऐसे कैसे हो सकता है हमें ईर्ष्या-द्वेष का भाव है जो वो आगे बढ़ गया तो हम ही उसे नीचे गिरा देते हैं।
  • दान तभी सार्थक है जब वह जरूरतमंद तक पहुंचे, न कि किसी ऐसे व्यक्ति के पास जो आर्थिक सम्पन्न हो।
  • मंदिर दिया दान पुजारी में अहम जगाता है, किसी संस्था को दिया दान चंद लोगों तक पहुंच पाता है।
  • ऐसी ही है नए आड़म्बर, मैं आपके लिए लेकर हाजिर होता रहूं। यदि पसंद आए तो कमेंट्स जरूर करना। आप हमें सुझाव या कोई लेख भेज सकते हैं।


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