हम हक मांगना जानते हैं, देना नहीं




यह देखने को मिलता है कि अक्सर लोग अपने अधिकारों के बारे में पल-पल चिंतित रहते हैं। आज भी अक्सर वर्तमान हालातों के लिए लोग पूर्व कालीन राजतंत्र व अधिकारियों को ही दोषी मानते हैं। लेकिन वे भूल जाते हैं कि उनके आंखों देखे लोकतंत्र में भी वही जनप्रतिनिधि राजतंत्र और सामंतशाही जैसी सुविधाओं को अपने लिए हर जगह उपलब्ध करवा रहे हैं। आज भी आम जनता और युवा उपेक्षित है। पढ़ें इस कविता में।

लोकतंत्र बोला राजतंत्र से,
कैसा है शोषण कर्ता?
यह सुन राजतंत्र बोला,
सुन रे जन के प्रतिनिधि,
कहां से सीखा है भ्रष्टाचार का मंत्र।
माना मुझमें लाख दोष थे,
वंश-जाति वाद था।
पर तू कौनसा सम भाव से देखता है नर को,
झांक अपनी गिरेवां में,
तू भी तो बंटा है फर्स्ट क्लास सेकंड क्लास में,
VIP, VVIP और भी है,
लोकतंत्र बोला ये लोगों की सोच है,
वही करते भेद है,
मैं तो सबको समानता का संदेश देता हूं।
तो मैं क्या कहता हूँ लोगों से,
ताकत से लूटों जन को।
वो भी तो शक्ति से अंध होते हैं।
मैं भी तो प्रजा को संतान मानने का संदेश देता था,
कब जन को शोषित का उपेदश दिया था?
ये तो लोग ही थे पोषक शोषण के।
हमने शोषण किया ये माना,
तुम क्या कर रहे हो ये बताना।
लोकतंत्र बोला,
दोषी तो हर देशकाल में शासक और अधिकारी होता है।