तर्क का कुतर्क: बात जनसंख्या नियंत्रण की और जोड़ दिया प्रधानमंत्री से


  • खैर हमें इस पचेड़े में नहीं पड़ना है, पर एक बात जरूर कहेंगे लोगों को कुतर्क करना बहुत अच्छे से आता है। जब बात धर्म-जाति की हो तब तो, सभी विशेषज्ञ बन जाते हैं, पर इन उच्च पदों पर बैठे लोगों को पता नहीं कि अपने जीवन में कभी अपने धर्म-जाति के गरीब और जरूरतमंद लोगों के बीच गये हैं क्या? बस उन्हें तो वहीं एक-दूसरे विशेषज्ञ की टांग खिंचाई करने के लिए तुरंत हाजिर जबाव देना आता है और लोगों को इसकी आढ़ में भड़काकर अपने पद की गरिमा और अपनी व अपने चाहने वालों की सुख-समृद्धि याद रहती है।
  • ऐसे ही कुछ वाकिये हाल में भारतीय राजनीति में खूब देखने को मिल रहे हैं। ऐसा ही एक ताजा वाकिया योग गुरु बाबा रामदेव और एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी की बीच छिड़ गया है। यह वाकिया है भारत की बढ़ती जनसंख्या पर, जोकि गंभीर है। यह मुद्दा कोई छोटा नहीं है, देश बहुत जटिल है। कोई इस पर सही नहीं बोल सकता है। अगर सही बोल तो लोग इस धार्मिक रूप देना शुरू कर देते हैं। जैसा की पिछले दो दिनों से यही देखने को मिला है।
  • योग गुरु बाबा रामदेव ने 26 मई, 2019 को देश में जनसंख्या नियंत्रण के लिये कानून लाये जाने की वकालत करते हुए कहा था कि दो बच्चों के बाद पैदा होने वाले बच्चे को मताधिकार, चुनाव लड़ने के अधिकार तथा अन्य सरकारी सुविधाओं से वंचित कर दिया जाना चाहिए। खैर, सलाह देने का हक सबको है, पर टांग खींचाई वाला फंड़ा हमें समझ नहीं आता है।
  • वैसे तो बाबा रामदेव से पहले हर भारतीय को यह बात पता है कि भारत की तेज तरक्की तभी संभव है, जब जनसंख्या पर नियंत्रण स्थापित किया जाए। यह किसी एक व्यक्ति या संस्था के प्रयासों से संभव नहीं है, बल्कि हर धर्म के बड़े लोग अपने समुदायों के लोगों को यह बात कहे कि 'बच्चे दो ही अच्छे'। परंतु किसमें प्रत्यक्ष कहने का साहस नहीं है, जैसे ही बाबा रामदेव ने इस बात की ओर सरकार को आगाह करने का था, जिसमें अप्रत्यक्ष रूप से धर्म विशेष के लोगों ने देश के आर्थिक विकास में यह बात न सोच कर सिर्फ इस पर अच्छा तर्क करने के बजाय कुतर्क करते हुए, इसे धार्मिक जामा पहनाने की कोशिश की गई।
  • बाबा रामदेव के मन:स्थिति एक धर्म विशेष से प्रेरित हो सकती है, पर एक देश के हित में हमें सोचना होगा। यह सच भी है धर्म विश्व इतिहास में सादा ही मानव पर हावी रहा है। जिससे प्रे​रित होकर लोग कैसी भी बात बोल सकते हैं। उन्होंने यह जो बात कही है उसके पीछे का सच भी यही कहता है कि देश का एक बड़ा वर्ग तो जनंसख्या को नियंत्रित करने में अपनी किया है, किंतु इस देश का एक वर्ग ऐसा है जो केवल धार्मिक कारणों से प्रेरित होकर जनसंख्या को बढ़ावा दे रहे हैं। जो उनके धार्मिक प्रवृत्ति वाले लोगों के लिए चिंता का विषय है।
  • जब हमारा देश एक तो फिर हमें डर क्यों? क्या हमें एक समृद्ध और विकसित देश बनने का हक नहीं। क्यों ये बड़े लोग सिर्फ अपने हितों को सर्वोपरि रखते हैं और धार्मिक बिगड़े बोल-बोलकर धर्म-जाति विशेष के लोगों को एक-दूजे के खिलाफ भड़काते हैं।
  • ओवैसी ने देर ने करते हुए तपाक जबाव दे डाला वो भी ट्वीट के माध्यम से। वाकिया यह था कि बाबा रामदेव ने कहा कि देश की आबादी नियंत्रित करने के लिए 'तीसरे बच्चे को वोट का अधिकार छीन लेना चाहिए।'
  • ओवैसी ने सीधा उन पर निशाना साधते हुए यह कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को केवल इसलिए अपना वोट का अधिकार नहीं खोना चाहिए, क्योंकि वह अपने माता-पिता के तीसरे बच्चे हैं।
  • यहां साफ जाहिर होता है कि मन में भय हो, पर उनके विकास की बातें नहीं की जाएगी। ताकि वे अनपढ़ और गरीब बने रहे। 



धर्मज्ञों तुम्हारी खैर नहीं, तकनीक से हमारा बैर नहीं


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  • यही कहता है विज्ञान, धर्म के पाखंड को तोड़ दिया और मानव को भौतिकता की ओर मोड़ दिया। 
  • आपको बता दें कई व्यक्ति धर्म के प्रति खुद को बड़ा कट्टर सिद्ध करते हैं, पर हमारे आज तक एक बात समझ नहीं आयी, फिर इन धर्मों के स्थलों और बड़े पद वाले व्यक्ति अपने ही लोगों के अन्य गरीबों की मदद क्यों नहीं करते हैं? क्यों आर्थिक रूप से हमें असमानता देखने को मिलती है? क्यों हमें ऊंच—नीच का भेदभाव नजर आता है। क्यों पैसों की बात आते ही एक ही परिवार के लोगों में कलह हो जाता है? क्यों भाई-भाई सम्पत्ति को लेकर मारने को उतारू हो जाते हैं?
  • अजी धर्म नहीं ये माया ही है जो कट्टरता के बीज बोती है।
  • भेदभाव हर जगह मौजूद है, फर्क यही है उसका रूप वहां पर भिन्न हो सकता है। नौकरी में भी पदानुक्रम होता है और उसके अनुरूप तनख्वाह मिलती है।
  • ये लड़ाई धर्मज्ञों की है, प्रकृति प्रेमी और मानव हितैषियों की नहीं है। न तो हम बाबा रामदेव का पक्ष में ज्यादा कुछ कहते हैं, न ही ओवैसी के पक्ष में। हमें तो अब एक डर सताने लगा है कि आने वाले कुछ वर्षों में मानव संतति पर तकनीक के हावी होने से संपूर्ण मानव जाति पर खतरा मंडराता दिख रहा है।
  • जी हम उदाहरण देकर आपको समझाते हैं।
  • फिर धर्म की लड़ाई लड़ने वाले केवल मानव पतन का देखेंगे और वो ज्यादा बोलेंगे तो उनकी जुबान आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस द्वारा काट ली जाएगी।
  • देखते नहीं हो जिन जानवरों ने मानव सभ्यता को इस मुकाम तक लाने के लिए अपना शारीरिक श्रम से किसानों और मजदूरों का साथ दिया था, आज बेकद्रों की तरह आवरा पशु बने फिरते हैं।
  • जी हम बात कर रहे हैं बैल, गधा आदि जानवरों की जिसने मानव को खेती से लेकर यातायात व मालवाहक की तरह दिन-रात मेहनत की है किसान के लिए। आज क्या मिला उन्हें मशीनों के आने के बाद किसानों ने अपने जीवन से ही बेदखल कर दिया।
  • चलों कई तो हमें रूढ़िवादी कहेंगे, पर हम कहते हैं एक दिन धर्मज्ञ देखते रह जाएंगे और मानव अपना अस्तित्व बचाने में नाकाम होंगे। इसलिए हमें मानव हित में काम करना चाहिए न कि एक-दूजे की टांग खिचाई करनी चाहिए।


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