हां, शायद लोगों को यह रूढ़िवादी लगे लेकिन सच है। हमें एक बार अतीत में झांक लेना चाहिए कि आखिर गौवंश आवारा क्यों हुआ?
  • अगर इस प्रश्न को विकास के नजरिये से देखें तो यही प्रतीत होता है कि भारत में जब से किसानों ने तकनीक को अपनाया है, तब से गौवंश का बैल बेकार हो गया। लोगों ने आधुनिक तकनीक और पैसों से विकास को पाटने की सोची और यहीं से बैलों पर से विश्वास उठ गया। रहा-सहा प्रकृति प्रेमी, जिन्होंने माना की किसान पशुओं (बैल) पर अत्याचार करते हैं। वे उन्हें खेती में जोतते हैं और अनाज को बाजार तक ले जाने में आनाकानी करने पर बेरहम तरीके से मारते हैं।
  • यह पशुओं के प्रति हिंसा और शोषण है। यह सत्य हो सकता है, लेकिन किसानों ने भी अपने बैल के साथ शारीरिक श्रम करना छोड़ दिया और अब फालूती की बातों में दिमाग लगाते हैं, जैसे राजनीति करना, आपस में बेमतलबी की बातों पर लड़ना। सबको पैसों की चमक ने मोह लिया और धीरे—धीरे भारत के किसानों ने बैल की कद्र करना छोड़ दिया, अब बैल समुदाय आवारा कहलायेगा नहीं तो क्या पहले की तरह पूजा जाएगा।
  • और यह सही भी है, अगर आप से कमाई नहीं होती तो क्यों कोई किसान खर्चा उठायेगा, क्यों व्यर्थ की सेवा करेगा। अब कहां गये वो प्रकृति प्रेमी जब पशु आवारा घूमते हैं तो अब सरकार को कौंसते हैं। अजी अभी ये कैसे भी आय का जरिया नहीं है, इसलिए इनकी कद्र नहीं है क्योंकि ये मशीनों की तरह तेजी से काम नहीं कर पाते हैं। तेज गति से बाजार तक सामान नहीं पहुंचा पाते हैं। ऐसे में किसानों द्वारा इनको आवारा छोड़ दिया गया। और ये कोई पर्यटन को नहीं बढ़ावा देते है, इसलिए कोई भी प्रकृति प्रेमी इस ओर ध्यान नहीं देता है।
  • जब से किसान ने गौवंश के बैल का छिटकाया है तब से बैल आवारा पशुओं की श्रेणी में आ गए। अब सरकार के लिए ये सरदर्द बन हुए हैं। ये गौवंश है जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं की दृष्टि से न तो ये पर्यटन को बढ़ावा देने में सहायक है जो इनका संरक्षण किया जाए, क्योंकि ये बाघ या पांड़ा नहीं हो जो पर्यटन के माध्यम से देशों की इकोनोमी को बढ़ा सके। इसलिए इनका संरक्षण पर पैसा बर्बाद करना उचित नहीं है। शायद यही कारण है आज यह पशु जो कभी मानव सभ्यता में सबसे ज्यादा उपयोगी और किसान व अर्थव्यवस्था का वाहक था। पर तकनीक के चलते इस जीव पर न तो सरकार मेहरबान है न कोई पेटा।
क्यों उठा आवारा सांड़ों का मुद्दा 
  • भारत में लोकसभा चुनाव 2019 अपने तीन चरण पूरे कर चुका है। इस दौरान कई ऐसे अवसर आये जब उत्तर प्रदेश में आवारा पशुओं को ताण्डव देखने को मिला। जहां इसे अखिलेश यादव ट्विट के माध्यम से सरकार की नाकामी बता रहे हैं और सरकार पर आरोप है कि वे चुनावी रैलियों को असफल करना चाह रही है।  
  • अखिलेश यादव ने अपनी रैली के दौरान घुस आये सांड को लेकर ट्विट किया कि ‘ये सांड पशुओं और किसानों की ओर से ज्ञापन लिए घूम रहा है। बेचारा फिर ग़लत जगह आ गया। जाना था तिरवा, पहुँच गया छिबरामऊ।’
  • फिर एक ओर तंज कसते हुए मन कि भड़ास निकलते हुए कहा कि ‘विकास पूछ रहा है, आजकल आप देख रहे हैं कि नहीं कि किस तरह अनाथ साँड़ों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है? कल रैली में एक सांड़ अपना ज्ञापन देने घुस आया और भाजपा सरकार का गुस्सा बेचारे सिपाही पर निकाल डाला, जब उसे बताया कि ये उनको बेघर करने वालों की रैली नहीं है, तब जाकर वो शांत हुआ।’
  • उनके चुटकी लेने पर हमें ऐसा लगा कि कभी किसान का सहायक यह गौवंश का प्राणी आज सांड बन गया जब किसान और मानव सभ्यता को इसकी जरूरत थी, तब यही बैल कहलाता था और पूजनीय था।
  • सरकार तो कोई भी हो वह तो भूल गई पर अखिलेश यादव जब सरकार में आयेंगे तब इन सांडों की बेरोज़गारी पर जरूर सोचेंगे और सोचना भी चाहिए क्योंकि ये सांड मानव के तकनीक पर आश्रित होने से उपेक्षित हो गये और सांड बन गये हैं। आज का युवा भी मशीनों के कारण उपेक्षित हो रहा है वक्त रहते अगर सोचा नहीं गया तो अखिलेश ही नहीं हर सरकार के लिए चुनौती होगा।  
  • लोकसभा चुनावों में चुनावी रैली के दौरान उत्तर प्रदेश में कई रैलियों के दौरान आवारा सांड़ आ जाने से राजनीतिक माहौल गर्मा गया था। जहां विपक्ष इसे सरकार पर यह कह कर आरोप लगा रहा था कि वे हमारी चुनावी रैलियों को विफल करना चाहते हैं। लेकिन वे तो सरकार के लिए सरदर्द बने हैं और उनकी ही रैलियों में चले आते हैं।

एक दिन मानव श्रम की जगह मशीनें लेगी तो युवा की हालत भी कुछ ऐसी ही होगा?


  • जो हालात आज देखने को मिल रहे हैं उससे तो यह लगता है कि आने वाले समय में यदि मानव श्रम की महत्ता को नहीं पहचाना गया तो यह सत्य है कि भारत का युवा व मजदूर वर्ग के लिए रोजगार के अवसर कम हो जाएंगे। दुनिया के कई ऐसे देश हैं जहां पर मानव श्रम अपेक्षाकृत कम है अतः वहां पर मशीनीकरण को बढ़ावा देना स्वाभाविक है, क्योंकि वे अन्य देशों के मानव को अपने यहां बहुत ही कम रोजगार देते हैं।
  • अगर हम देखें कि भारत दुनिया का सबसे युवा देश है जहां पर युवा शक्ति को सही दिशा दी जाए तो अनेक समस्याओं को समाधान हो सकता है। परंतु एक देश दूसरे देश के मानव श्रम को अपने देश में काम देने से परहेज करता है क्या पता वे वहां उनको गुलाम बना ले या अंग्रेजों की भांति कही देश को अपने कब्जे में कर ले।
  • जी, भारत के युवा के लिए बढ़ता मशीनीकरण बड़ी चुनौती है जिसे कोई भी देश गंभीरता से नहीं ले रहा यहां तक कि भारत की सरकार भी।


अब आप कहेंगे कि बेरोज़गारी के लिए मशीनीकरण को कौसना गलत है ?


  • तो मैं आपके सामने एक रूढ़िवादी ही सही पर कुछ भारतीय सोच की गणनाओं को बताता हूं, परंतु अभी ये भारतीय की शोध है इसलिए तज्जबो नहीं मिलेगा। अगर इस रिपोर्ट को एक बंद एसी की बासी सड़न वाले कमरे में की गई होती तो इसे सत्य माना जाता लेकिन एक भारतीय की जमीनी हकीकत पर कोई विश्वास नहीं करेगा बल्कि रूढ़िवादी सोच करार दिया जाएगा।
  • खैर, हम रूढ़िवादी ही सही पर जो सच है उसे कहे बैगर नहीं रहेंगे फिर चाहे हमारे ऊपर रूढ़िवादी का ठप्पा ही क्यों न लगे।
  • अगर कोई कहता है कि आप गलत कह रहे हो तो मैं आपको बता देता हूं कि अगर हमारे अतीत में हम झांके तो हम पायेंगे कि मानव श्रम की उपेक्षा तीव्र गति से हो रही है।
  • हमारी आंखों देखी बात है कि सन 1992 के आसपास जब एक सड़क का निर्माण किया जाता था तब उस एक किलोमीटर की रोड़ पर 20-30 लोगों को रोजगार दिया जाता था, जोकि मानव श्रम का सम्मान था। किंतु जबसे केवल अमीर लोगों के मुनाफे और दानवाकार की बड़ी-बड़ी मशीनें आई तब से उस मजदूर श्रम की उपेक्षा होने लगी। जो लोग मजदूर के बारे में बहुत सोचते हैं वे लोग उस मानव का ही रोजगार छीन लेते हैं। इस ओर किसी का भी ध्यान नहीं गया और इस क्षेत्र से धीरे-धीरे मानव श्रम गायब हो गया केवल वे लोग जो बड़ी मशीनों को ओपरेट करते हैं उनका ही अभी वक्त है शायद एक समय बाद इनको भी आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस के आने से नौकरी से हाथ धोना पड़ जाए।
  • उसी दौर पर जब कोई व्यक्ति मकान बनवाता था तो उस मकान की छत डालेने वाले मजदूरों की संख्या भी लगभग 20 से 25 होती थी लेकिन ये भी मशीनीकरण के चलते सिमटकर 5 से 8 लोगों तक रह गये।
  • हां आज का मानव केवल तकनीक पर आंख मिचकर यकीन कर रहा है और तीव्र गति से विकास कर रहे देशों के मुकाबले भारत पिछड़ न जाए इसके लिए भी वे मजदूरों या मानव श्रम करने वाले की अपेक्षा मशीनों पर अधिक विश्सास करते हैं। क्योंकि ये मशीने मानव श्रम की अपेक्षा अधिक तेज गति और सफाई से काम करती है।
  • दोष उनका भी नहीं है क्योंकि आज का मानव धूप में काम करने से भी जी चुराता है। चलो कोई नहीं आने वाला समय बताएगा कि भारत का मानव श्रम मशीनों के चलते बैल की भांति आवारा नहीं हो जाए। भारत की विशाल जनसंख्या के चलते मानव श्रम को सही इस्तेमाल करने के लिए वे क्षेत्र चुनने चाहिए जहां पर इसे खफा कर रोजगार पैदा किए जा सके नहीं तो इसका उपेक्षित होना तय है।
  • पहले तो कभी नहीं सुना कि सांड़ आवारा हो गया और युवा अपराधी और बलात्कारी हो गया।
  • दोस्तों, लघु संसद का सच में आज का यह विषय आने वाले दिनों में मानव श्रम की उपेक्षा को ध्यान में रखकर लिखा गया है। हां, आज का युवा